भावना ठाकर 'भावु'
लो हया को हटा ली जुबाँ से
पर्दा क्यूँ करूँ तुमसे
आराध्या हूँ तुम्हारी
चाहत है, शिद्दत है, तिश्नगी है...
तुम्हें पाने की तलब वाली
उर के भीतर चिंगारी भड़की है...
झिलमिलाती शाम की सौगात दे दो
मन के कोरे केनवास पर
एक नाम लिखना है मुझे...
बस इजाज़त दे दो...
वो चरम लिख दूँ जो समर्पित है..
सदा दो न तुम
क्या मेरी तिश्नगी की ज्वाला
पहुँचती है तुम तक
विराट है मेरे सपने मेरे अरमाँ
कहो समा पाओगे मेरे संसार में
खुल्ला निमंत्रण है....
प्रेम की भाषा को समझो
प्रवाल से अंकुरित स्पंदन है मेरे
हल्की रोशनी तुम्हारी हंसी की
उफ्फ़ काफ़ी है
मेरी चाहत की चौखट को महका दो...
टीस उठी है न जो अभी-अभी
तुम्हारे हदय मंदिर के भीतर
मेरे मनुहार की कशिश है
मौसम भर दो एक खास
प्रीत की बारिश वाला
मिट्टी सी महक जाऊँ
और तुम अपनी साँसों में भर लो...
चलो हथेलियों को जोड़ ले
मैं और तुम हम की ओर प्रस्थान करें
तुम चाहत के दीये में
इज़हार का तेल सिंचो....
मैं पुष्पांजलि बन जाऊँ
तुम्हारे कदमों की रज संग मिलकर
तुम रूह की धड़क बनों
मैं काया बन जाऊँ,,,,
क्यूँ दो नज़र आए हम
दो बदन और एक जान बन जाए...
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु