राजेश कुमार सिन्हा
स्नेह का अमृत पान कराते हो तुम
मेरी एक खुशी के लिए
अपना सर्वस्व लुटाते हो तुम
न दिन की फिक्र
न चिन्ता रात की
कितने ऐसे पल काट चुके तुम
मेरी पलकों से जब छलकी बूंदें
उस पल ही आह भरी तुमने
कैसे कहूँ क्या हो तुम
मेरे लिए
उँगली पकड़ के चलना सिखाया
हर पल मेरे साथ खड़े हो
इसका भी एहसास कराया
अब तक जो कुछ तुमसे पाया
कैसे लिखूँ मैं शब्द नहीं हैं
कैसे कहूँ क्या हो तुम
मेरे लिए
इस जीवन को कैसे जीना होगा
आगे कैसे बढ़ना होगा
आयेंगी हजार मुश्किलें
पग पग पर कांटे होंगे
कैसे कैसे लोग मिलेंगे
सब कुछ सहज नहीं होगा
ऐसे में आशीष तुम्हारा
मेरे पथ का सम्बल होगा
कैसे कहूँ क्या हो तुम
मेरे लिए
राजेश कुमार सिन्हा
मुम्बई