रेप की सजा फांसी

सुधीर श्रीवास्तव 


 उन्नाव कठुआ दिल्ली के बाद हाथरस और बलरामपुर की घटना ने जनमानस को एक बार फिर झकझोर कर रख दिया है। हाथरस और बलरामपुर में तत्काल हुई घटना ने उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस प्रशासन पर अनेकों सवालिया निशान लगा दिया है ।इन घटनाओं में जिस बीमार मानसिकता का स्वरूप देखने को मिला है वह कहीं ना कहीं समाज के लिए,भविष्य के लिए चिंता का कारण बन सकता है ।यह दोनों घटनाएं कहीं ना कहीं प्रदेश के पुलिस प्रशासन का इकबाल खत्म होने का जीता जागता उदाहरण है ।


प्रश्न उठता है रेप की घटनाओं के अभियुक्तों को क्या सजा दी जाए कि इस तरह की घटनाएं ना हों।


 मेरे विचार से फांसी की सजा किसी भी स्थित में उचित नहीं है क्योंकि फांसी की सजा से अभियुक्त को कुछ ही देर में जीवन से मुक्ति मिल जाती है जिसे किसी भी स्थिति में सही नहीं ठहरा सकता ठहराया जा सकता। क्योंकि उस अपराधी ने अपनी जिस बीमार मानसिकता का परिचय दिया होता है एक जीती जागती बेटी के साथ जिस तरह की हैवानियत दिखाई होती है उसके साथ भी उसी तरह की हैवानियत दिखाई जानी चाहिए और यह सब सार्वजनिक रूप से होना चाहिए।ताकि लोग अपनी आंखों से देख सकें ।बस इसका स्वरूप कानूनी होना चाहिए और अपराधियों को वैसी ही परिस्थिति दर्द पीड़ा पहुंचाए जाने की जरूरत है,ताकि समाज में घूम रहे भेड़ियों के मन में भय व्याप्त हो सके। सरकार को ऐसे फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने होंगे जिसमें समयबद्ध ढंग से सुनवाई और फैसले हो सके ।


 इसी के साथ लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे अपराधियों को किसी भी हालत में रसूखदार राजनेताओं और शासन सत्ता में बैठे लोगों तक उनकी पहुंच से दूर रखने की भी व्यवस्था होनी चाहिए ।


यदि सरकार ने इसी तरह की अकर्मण्यता और अक्षमता पर पर्दा डालने की कोशिश की जैसा कि हाथरस में हुआ और जल्दी जल्दी रात के अंधेरे में लाश को जला दिया गया ।


विडंबना देखिए कि जिस बच्ची के साथ पहले बलात्कार की रिपोर्ट आती है उसे भी बाद में झूठा ठहरा दिया गया ।समझ में नहीं आ रहा है आखिर चिकित्सकों की यह किस तरह की जांच व्यवस्था है। कहीं ऐसा तो नहीं यह सब किसी दबाव का नतीजा हो।यदि हालात इसी तरह बने रहे तो वह दिन दूर नहीं जब समाज में अनैतिकता और अपराध का नंगा नाच खुलेआम होने लगेगा ।जिसे रोक पाना किसी भी सरकार ,प्रशासन,समाज के लिए नामुमकिन हो जाएगा ।


हम भले ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और बेटी बेटा एक समान का ढोल पीटते रहे लेकिन जब तक हम बहन बेटियों को सुरक्षित माहौल नहीं दे पाएंगे तब तक इन नारों का या अभियानों का कोई मतलब नहीं ।


सरकारों को चाहिए की रेप जैसी घटनाओं के लिए तुरंत कड़े कानून बनाए और अपराधियों को सार्वजनिक सजा की व्यवस्था करें ।बिना सार्वजनिक सजा के डर से अब भय का वातावरण बन पाना शायद नामुमकिन है ।फांसी और उम्र कैद की सजा ऐसे अपराधियों के लिए ना काफी होगा ।


सरकार को चाहिए कि वह ऐसे कानून बनाए जिसमें उम्रकैद के साथ ही सार्वजनिक सजा का भी प्रावधान हो ताकि अपराधियों में गांव का वातावरण बन सके और हमारी बहन बेटियां सुरक्षित रह सकें।


★ सुधीर श्रीवास्तव 


     गोंडा उत्तर प्रदेश 


       8115285921 


©स्वरचित मौलिक अप्रकाशित


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