ख़्याल तुम्हारा क्यों है

 


नींद तो बस मेरी ,


ख़्वाब तुम्हारा क्यों है।


मेरी फिक्र नहीं ,


ख़याल तुम्हारा क्यों है।


वक़्त के साथ सब ही,


बदल गया  लेकिन,


दिल कम्बख्त मेरा,


आज भी तुम्हारा क्यों है,


तेरे कुचे में सर पर मेरे,


पत्थरों की बारिश है,


दिल आशना है रह रह के,


तुझको पुकारे क्यों है,


ज़िन्दगी के चेहरे से,


हट चुका है नक़ाब,


ज़माना फ़िर भी मुझको, 


नाम  से तेरे  पुकारे क्यों है,


लोग भूल  ही जाते हैं,।


तुम्हारी तरह "मुश्ताक़"


मेरे लबों पर हर वक़्त,


ज़िक्र तुम्हारा क्यों है,


 


डॉ. मुश्ताक़ अहमद  शाह


सहज़ मध्यप्रदेश


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