गज़ल


आसमां में भरी है उड़ान


अभी आसमां लूटना है बाकी 


 समुन्द्र में लगाई है डुबकी 


अभी गहराई मापना है बाकी 


अभी बढ़ाया है पहला कदम 


उच्चाई पर पहुंचना है बाकी 


ली है खुली हवाओं में सांस 


अभी हवायो का रुख बदलना है बाकी 


अभी खिली हूं कली भांति 


फूल बन महकना है बाकी


जग में बनाई है पहचान 


अभी जहां मुठ्ठी में करना है बाकी 


अभी तो एक किरण बन हूं चमकी


सूर्य बन तपना है बाकी....


रमनदीप कौर


लुधियाना (पंजाब)


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