विविध भाव के दोहों की पुस्तक : कांतिपति दोहावली


हिंदी साहित्य में दोहा छंद सदा से लोकप्रिय रहा है। रचना के साथ सम्प्रेषण में भी दोहा छंद प्रभावकारी व कर्णप्रिय माना जाता है। कबीर, रहीम आदि के दोहे इतने लोकप्रिय और ज्ञानवर्धक माने जाते हैं कि धार्मिक स्थलों पर सुबह-शाम भजन के रूप में भी उसे सुना जा सकता है। 713 दोहे लिखकर बिहारी अमर हो जाते हैं और गागर में सागर भरने वाले की उपाधि पाते हैं।सर्व भाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली से कवि नंदलाल सिंह कांतिपति की सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'कांतिपति दोहावली' दोहा लेखन की परंपरा को समृद्ध करने वाली पुस्तक है। इस पुस्तक में समय के साथ गतिशील रचना-धर्म का प्रमाण है। कवि कांतिपति जी ने दोहों की रचना करते समय भाषा की सरलता का पूरा ध्यान रखा है। दोहों को शब्दों के शतरंज का बिसात नहीं बनने दिया है। इस दोहावली में प्रेम की पावन सृष्टि है तो ईर्ष्या व वैमनस्य का विकराल रूप है। हास्य की गुदगुदी है तो व्यंग्य की चुभन। प्रकृति की चिंता है तो पराक्रम के लिए ललकार।कवि नंदलाल सिंह 'कांतिपति' की यह 'कांतिपति दोहावली' 1472 दोहों का संकलन 176 पृष्ठ की है जिसके अंत में पाठकों के लिए एक प्रश्नोत्तरी भी दी गई है। दोहों का फॉन्ट साइज सामान्य से कुछ बड़ा रखा गया है लेकिन पेपर बैक में नील वर्णी यह पुस्तक  मैट लेमिनेशन के साथ देखने में भी बहुत प्यारी और आकर्षक लग रही है। 200 रुपये की यह पुस्तक बिक्री के लिए अमेज़न व फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। यह पुस्तक निश्चय ही दोहा प्रेमियों के हृदय में उतरकर अपनी पहचान अवश्य बनाएगी।


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