तितली-तितली मैं हुई 

 



छू कर जाती जब हल्के से, 


      केशों को मृदुल-मृदुल बयार। 


पल-पल मन के आँगन में, 


   झड़ते नित-नित बन हरसिंगार।


 


ढलती कभी सरगम में, 


       शरबती सी कभी घुलती। 


बूँदें रिमझिम-रिमझिम सी, 


           मन को लगे टटोलती। 


 


हुआ सावन मनभावन, 


         अंकुरित मृदु स्वप्न हुए। 


मतवारे मन को जैसे, 


         लाज घटा बनकर छुए। 


 


तितली - तितली मैं हुई, 


           प्रीत तेरा मकरंद हुआ। 


अधरों पर बस नाम तेरा, 


           पावन सी कोई दुआ। 


 


लग रही हर पल सृष्टि में, 


             राग मिश्री सी घुली। 


गुदगुदाती पल-पल लगी , 


             गाँठ सी अंतर खुली। 


 


डॉ उषा किरण


पूर्वी चंपारण, बिहार


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