एक धक्का सा लगा था
जब तुम गए थे
आज भी दिल रो रहा है
ऐसा क्यों हो रहा है
मैं ही नहीं,
मेरे जैसे लाखों हैं
जो तुम्हें रोज़ याद करते हैं
जो तुम्हारी,रोज़ बात करते हैं
सोचतें हैं कि काश
तेरह जून को तुमको कह पाते
कि तुम सर्वोत्तम हो
कि तुम किसी से न कम हो
चले गए तुम
हम सबको उदास करके
चलो हमारी छोड़ो,
कभी सोचा, कैसे रहेंगे
तुम्हारे बिना सब लोग, घर के
कितना समय बीत गया
यह ख़ालीपन
यह अधूरापन, कम ही नहीं होता
तुम्हें इंसाफ मिले,
अब मन यही बोलता
~ रूना लखनवी