सखियाँ हैं फुलवारी
सखियाँ हैं किलकारी
सखियों का संग सुहाना
सखियाँ हैं ज़िंदगानी
मन के सूनेपन को रीत लेती हैं
पढ़ लेती हैं दर्द का सागर आँखों में
और समझ लेती हैं मन के भाव मुस्कानों से
बरसो बरस दूर रहकर भी
मन के इतने पास
कि धड़कनों को भी पता होती है
उनके कदमों की चाप
जब भी मिलती है तो बचपन जीती हैं
आ़खे भिगोती हैं, कहकहे लगाती हैं
बिना किसी परवाह के दुपट्टे उड़ाती हैं
ज़िंदगी को आसान बनाती हैं
अटकन-चटकन का खेल हो,
या हो दही -बताशा
चाट के हो चटकारे या
होली की टोलियां
सखियों का संग
घोले हर पल में रंग
सखियों का साथ जरूरी है
चाहे नयनों में भरा हो
या अधरों पर मुस्कान खिली हो
उम्र के हर पड़ाव पर
जीवन के हर मोड़ पर
सखियों का साथ संबल देता है..।।
डाॅ० अनीता शाही सिंह
प्रयागराज