साजन की राह

 


साजन की मैं राह देखती ,


कर फूलों का श्रृंगार।


सज - संवर कर मैं बैंठी हूॅ़ं,


बालों में लगा के गजरे का हार।।


 


 कुछ तस्वीर लगी दीवारों पर,


भगवान से माॅ़ंगु तुझे मैं आज।


कुछ सपनें लेकर आँखो में,


रस्ता देख रही बार - बार।।


 


 


  तुम्हें पसंद हरे रंग की साड़ी,


हरी चूड़ियां लाल श्रृंगार...


माथे में हैं लाल कुमकुम ,


और चेहरे पे मंद मुस्कान।।


 


कुछ सुध रही ना मुझको साजन,


कब बिल्ली आयी पास।


मैं तो देखूॅ़ं राह तुम्हारा,


तुम कब आओगे पास।।


 


बैठ तुम्हारी राह देखती,


मैं बना रहीं हूॅ़ं हार। 


अब आॅ़ंखो के काजल भी मिट गए,


पर नैनो को है आश ।।


       साजन मेरे आयेंगे ये मन को हैं विश्वास...


 


स्वरचित - सरिता लहरे "माही"


पत्थलगांव जशपुर (छत्तीसगढ)


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