भूपेन्द्र दीक्षित
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ
मँझोले परेवे
बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले
डौल के बैडौल
उड़ने जहाज़(अज्ञेय)
साहित्य और साहित्यकार की कोई सीमा नहीं होती।जहां तक हमारी दृष्टि जाती है ,वह हमारी सीमा है ।परंतु साहित्य और साहित्यकार की दृष्टि की कोई सीमा नहीं। जहां सूर्य भी नहीं जा सकता ,वहां साहित्यकार की प्रखर दृष्टि पहुंचती है ।अपनी इसी दृष्टि से वह देश काल के समन्वय रचता है ।सत्य शिव और सुंदर की रचना करता है अपनी दृष्टि से वह कालजयी होता है।
साहित्य अपने रंगों से नित नए इंद्रधनुष रचता है। साहित्य के इन इंद्रधनुषी रंगों से कालजयी ग्रंथों की रचना होती है और यह ग्रंथ किसी भी राष्ट्र का इतिहास रचते हैं। यही इतिहास राष्ट्र के गौरव का विषय होता है।