राह निराली प्रेम की,अलग अनूठी रीति
शांत भाव मन दुख सहे,छूटै नहीं प्रीति।
प्रेम हुए मन बावरा , जुदा निराले भाव
देता ही हरदम रहा,होता नहीं अभाव।
मन के भाव छिपे नहीं, जाने सब बिन बोल
जाति,धर्म देखत नहीं,प्रेम का भूगोल।
मरण काल में भी मिले,प्रेम सुनहली धूप
जीवन तरु लहलहा उठे,खिले प्रेम का रूप।
प्रेम सुधा जिसने चखी,नहीं पड़े कमजोर
विषम हवाओं में खड़ा,चले न कोई ज़ोर।
प्रीतम और प्रिय एक हो,ऐसे बने उदार
प्रेम ईश का दिया हुआ,है अनुपम उपहार।
प्रेम रंग मन पर चढ़े,भूले सब संसार
सबमें प्रिय ही दिखता,मन में हो गर प्यार।
शकुंतला मित्तल
स्वरचित मौलिक