सच को दबाना मुमकिन नहीं है
मेरा लौट जाना मुमकिन नहीं है
क़दम खींच लूँ मैं सत्ता के डर से
मुझको झुकाना मुमकिन नहीं है।
बढ़ाया क़दम अब न पीछे धरूँगी
जनता हूँ मैं अब न तुमसे डरूँगी
बिठाया तुम्हें जिस कुर्सी पे हमने
उसी नींव को मैं हिलाकर रहूँगी।
सुनो अंत आ गया अब तुम्हारा
गया वक़्त आता नहीं है दुबारा
अहंकार है जिस सत्ता का तुमको
वोट ही देगी जवाब अब करारा ।
बहुत सह लिया पर अब न सहेंगे
ईंट का जवाब हम पत्थर से देंगे
बहुत खेल खेला है सत्ता के मद में
तुम्हें धूल में अब मिलाकर रहेंगे ।
अकेली समझके नहीं वार करना
मैं बेबस नहीं हूँ इसे तुम समझना
अगर आ गई मैं मिटाने पे तुमको
मैं साक्षात काली हूँ ये जान लेना।
कुसुम तिवारी झल्ली
09/09/2020