लघुकथा

आईना 



आज तीसरे पहर मैं और पत्नी अंजू साथ बैठकर चाय पी रहे थे, तभी बेटी ओजस्वी दौड़ी- दौड़ी आई। जिले में चित्रकला की प्रतियोगिता में, उसने प्रथम स्थान प्राप्त किया है ।उसके बनाए गए चित्र को देखकर, मैं स्तब्ध था। चित्र में "समुद्र में शेषनाग पर लेटी हुई मां "लक्ष्मी" का पैर दबाते हुए मुस्कुराते भगवान "विष्णु"......l


" बेटा यह क्या है? "मैंने आश्चर्य से पूछा. 


" पापा आप ही तो कहते हैं कि हमें स्त्री पुरुष में भेद भाव नहीं करना चाहिए l"उसने मासूमियत से कहा. 


मुझे खुद पर गर्व हो गया l


हमने बेटे और बेटी को एक समान दर्जा दिया और हमारा घर भी इंसान प्रधान है ना कि स्त्री या पुरुष प्रधान। मेरी और पत्नी की हर चीज में बराबर भागीदारी रहती है ।जाहिर सी बात है, उसके बीमार होने पर मैं भी उसकी सेवा करता हूं। मेरे बच्चो में स्त्री और पुरुष की बराबरी का संस्कार ही पनप रहा है.... l


 


प्रवीण राही


संपर्क सूत्र 8860213526


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