कोरोना काल मे माँ बनने से पूर्व मे ही करें सम्पूर्ण तैयारी

 



- संक्रमण के मद्देनजर घबरायें नहीं, सबसे पहले स्त्रीरोग विशेषज्ञ से मिलें


- गर्भावस्था के चार चरणों मे रखनी होगी सावधानी


- पूर्व गर्भावस्था, गर्भावस्था के दौरान, प्रसव अवधि और प्रसव के बाद इन चारों चरणों के दौरान सतर्कता बरतने से नही होगी स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ


मीर शहनवाज


दरभंगा। कोरोना काल में भी जो महिलाएं मां बनने का सपना देख रही है, वह सुरक्षित तरीका व चिकित्सीय परामर्श लेकर सुरक्षित प्रसव के साथ स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। इसके लिए महिलाओं को संक्रमण के मद्देनजर विशेष रुप से सावधानी बरतनी होगी। साथ ही परिवार के सदस्यों को भी इनका खासा ध्यान रखना होगा। मां बनने से पूर्व ही उन महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति विशेष सावधानी बरतनी होगी, ताकि अंतिम क्षणों में कोई समस्या ना उत्पन्न हो सके। इस संबंध में निजी चिकित्सक डॉ विनय कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल में वैसे तो सभी को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर मां बनने वाली सभी महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। डॉ कुमार के अनुसार गर्भावस्था के 4 चरण होते हैं- पूर्व गर्भावस्था, गर्भावस्था के दौरान, प्रसव अवधि और प्रसव के बाद। इन चारों चरणों के दौरान महिलाओं को सावधानियां बरतना आवश्यक है। डॉ कुमार ने कहा कि जब कोई महिला मां के लिए तैयार हो या योजना बना रही हो तो सब से पहले किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें। इससे स्वस्थ प्रेगनेंसी प्लान करने में सहायता मिलेगी। गर्भधारण करने के 3 महीने पहले से जिसे प्री-प्रेगनेंसी पीरियड कहते हैं, डॉक्टर के सुझाव अनुसार जीवनशैली अपनाने से गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएं भी कम होती हैं और प्रसव के बाद रिकवर होने में भी सहायता मिलती है।


 


मां बनने से पूर्व अपने मेडिकल हिस्ट्री से डाक्टर को कराए अवगत, कराए जांच


डॉ विनय ने जानकारी दी कि फाइब्रौयड्स और ऐंडोमिट्रिओसिस की संभावना के लिए भी जांच करवा लेनी चाहिए। अगर उनके परिवार में डाउन सिंड्रोम, थैलेसीमिया का इतिहास रहा है तो इस बारे में भी डॉक्टर को बताएं। अगर मूत्रमार्ग संक्रमण होने की जरा भी संभावना हो तो पेशाब की पूरी जांच जरूर करा लें। समस्या निकलने पर गर्भधारण करने से पहले पूरा इलाज कराएं। कहीं किसी को डायबिटीज, थायराइड, अस्थमा, किडनी, हृदय संबन्धित तो नहीं है। यदि ऐसी कोई शिकायत है तो प्रैगनैंसी से पहले उसे कंट्रोल जरूर कर लें। गर्भ से पहले एचआईवी, हैपेटाइटिस बी सिफिलिस आदि टैस्ट जरूर करवा लेने चाहिए ताकि प्रैगनैंसी या डिलिवरी के समय यह इन्फैक्शन बच्चे में न चला जाए। 


 


डॉक्टर के परामर्श से निम्नलिखित जांच ज़रूरी


डॉ कुमार ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, ब्लड प्रेशर, हीमोग्लोबीन, अल्ट्रासाउंड जाँचें आवश्यक हैं। साथ ही ब्लड टैस्ट करा कर यह भी देख लेना चाहिए कि चिकनपौक्स जैसी बीमारियों से बचाने वाले टीके लगे हैं या नहीं. कहीं आप को इन बीमारियों का खतरा तो नहीं, क्योंकि ऐसे इंफेक्शन कोख में पल रहे भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। सर्वाइकल स्मीयर टैस्ट जरूर करवाए। स्मीयर जांच सामान्यतया गर्भावस्था में नहीं कराई जाती है, क्योंकि गर्भावस्था की वजह से ग्रीवा में बदलाव आ सकते हैं और सही रिपोर्ट आने में कठिनाई हो सकती है। अगर वजन ज्यादा है और बॉडी मास इंडैक्स (बीएमआई) 23 या इस से अधिक है, तो वजन कम करने की कोशिश करनी चाहिए। वजन घटाने से गर्भधारण करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और गर्भावस्था की सेहतमंद शुरुआत कर सकती हैं। अगर वजन कम है तो डाक्टर से बीएमआई बढ़ाने के सुरक्षित उपायों के बारे में बात करें। इस परिस्थिति में माहवारी चक्र अनियमित रहने की भी संभावना अधिक होती है. इस से भी गर्भधारण में समस्याएं आती हैं। गर्भावस्था में बीएमआई 18.5 और 22.9 के बीच होना चाहिए। डॉ कुमार ने कहा कि इन बातो का ध्यान रख गर्भ धारण करने में भी कम परेशानियों का सामना करना पड़ेगा और साथ ही 9 महीने तक हेल्थी गर्भावस्था का आनंद उठा पाएंगी।


 


गर्भावस्था के दौरान किये जाने वाले टीकाकरण 


डॉ कुमार ने कहा कि 


1.हेपेटाइटिस बी वैक्सीन 


अगर प्रेग्नेंसी के दौरान मां को हेपेटाइटिस-बी संक्रमण है, तो यह जन्म के बाद शिशु को भी हो सकता है। इससे नवजात शिशु को भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं हो सकती हैं। नवजात बच्चे और मां को संक्रमण से बचाने के लिए हेपेटाइटिस बी का टीका लगवाना अनिवार्य होता है। 


 


2.डीपीटी वैक्सीन 


डिप्थेरिया, टेटनेस और पर्टुसिस का टीका गर्भवती महिला को 20वें से 28वें सप्ताह के बीच डीपीटी का टीका लगाना बहुत जरुरी है क्यूंकि नवजात में होने वाले काली खांसी का खतरा टल सकता है। काली खांसी से कभी-कभी नवजात की जान भी जा सकती है।


 


3.फ्लू वैक्सीन 


गर्भावस्था के दौरान महिला की इम्युनिटी पॉवर कम हो जाती इसलिए फ्लू वैक्सीन लगवाना जरुरी है। फ्लू वैक्सीनेशन के बाद गर्भवती महिला को इंजेक्शन लगने वाली जगह पर सूजन होने के साथ बुखार भी हो सकता है।  


 


4. व्हूपिंग कफ (काली खांसी) का टीका


निमोनिया और मस्तिष्क की सूजन जैसी की गंभीर जटिलताओं के कारण व्हूपिंग कफ यानी काली खांसी होती है। यह स्थिति भ्रूण के लिए खतरनाक हो सकती है। प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही (गर्भावस्था के 27 और 36 सप्ताह के बीच) में डॉक्टर यह टीका लगवाने की सलाह देते हैं।


 


5. इंफ्लुएंजा का टीका


गर्भवती महिलाओं (दो सप्ताह के प्रसव के बाद) की इम्युनिटी की वजह से हृदय और फेफड़े फ्लू से प्रभावित हो सकते हैं। गर्भ में पल रहे शिशु के लिए यह स्वास्थ्य स्थिति हानिकारक हो सकती है। इसलिए, गर्भवस्था में टीकाकरण के दौरान इंफ्लुएंजा का टीका लगवाना जरूरी है। शोध बताते हैं कि प्रेग्नेंट महिलाओं को दिया जाने वाला इन्फ्लुएंजा का टीका छह महीने की आयु तक के शिशुओं में इन्फ्लूएंजा बीमारी होने की संभावना को 63% तक कम कर देता है।


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