काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी कर चुके डॉ सुभाष चंद्र का विचार

 



 महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का शिक्षा दर्शन एवं राष्ट्र निर्माण । 


केएल शाही


वाराणसी।काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी मालवीय जी को साधारणत: एक राजनेता शिक्षाकर्मी एवं वकील के रूप में ही देखा जाता है जबकि मालवीय जी का मुख्य और अनिवार्य गुण एक राष्ट्रीय युग के रूप में ज्यादा महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक है भारत को एक समर्थ और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में निर्मित करने के लिए जिन महत्वपूर्ण पहलुओं को मालवीय जी ने अनिवार्य माना उनमें शिक्षा महत्वपूर्ण रहा और उनके प्रयासों में इसका ज्वलंत उदाहरण काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में देखा जा सकता है यह संस्था मात्र शिक्षा देने के लिए विश्व प्रसिद्ध नहीं रही वर्णित का योगदान राष्ट्र निर्माताओं को तैयार करता है जो कला साहित्य दर्शन विज्ञान चिकित्सा कृषि संगीत सहित राष्ट्र विधाओं की शिक्षा का केंद्र बनता रहा है ।


मालवीय जी मानव जीवन में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानते थे वह इस तथ्य में पूर्णता विश्वास करते थे कि मनुष्य की सभी समस्याओं का समाधान शिक्षा के माध्यम से ही खोजा जा सकता है बेस्ट शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से मानवता का विकास करने का स्वप्न देखा करते थे उनका मानना था कि शिक्षा के माध्यम से शिक्षण मानवता को अपेक्षित स्वरूप प्रदान करता है जीवन की संपूर्णता और उसकी विविध समस्याएं शिक्षा के लिए विषय है इसका प्रारंभ गर्भाधान से होता है और नृत्य पर्यंत इसकी प्रक्रिया चलती रहती है समाज को भूत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य की ओर शिक्षा एक श्रृंखला का कार्य करती है ।मालवीय जी के अनुसार स्वतंत्र राष्ट्र के समुन्नत नागरिकों के लिए शिक्षा का आदर्श ऐसा होना चाहिए जो उनकी समस्त अंतर भूत शक्तियों का विकास करें, इसके साथ ही व्यक्ति की स्वतंत्रता विभाग का विकास हो अपने शरीर में आत्मा के विकास में संलग्न रहकर अपना सर्वांगीण विकास करने में सहायक बन सके मालवीय जी शिक्षा को मात्र जीविकोपार्जन का माध्यम ना मानकर उसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखते थे ।उनके मतानुसार शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो मनुष्य के चरित्र देशभक्ति समाज सेवा मातृशक्ति और के प्रति कर्तव्य निष्ठा की भावना से घनिष्ठ संबंध जोड़ती हो मालवीय जी के शिक्षा पद्धति में देशप्रेम एक महत्वपूर्ण अंग था उनके अनुसार शिक्षा एक भद्र पुरुष का निर्माण न कर सके व शिक्षा व्यर्थ है ।जिस विद्यालय में देश प्रेम की शिक्षा नहीं दी जाती थी उच्च विद्यालय में बच्चों को शिक्षा प्राप्त मालवीय धर्म की शिक्षा को बहुत अधिक महत्व देते थे उनकी दृष्टि में आत्मा का प्रशिक्षण मस्तिष्क और शरीर के प्रशिक्षण से कम महत्वपूर्ण नहीं मानते थे उनके मत में यदि धर्म जीवन का संपूर्ण विकास मालवीय जी की शिक्षा पद्धति का मूल मंत्र था ,वे चाहते थे कि विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का ऐसा प्रबंध हो कि वे अपने शारीरिक बौद्धिक सर्वसाधारण के लिए शिक्षा निशुल्क कर दी जाए, जो अनिवार्य हो उनका कहना था। सभी स्तर का शिक्षा ऐसा प्रबंध होगी कोई बच्चा निर्धन होने के कारण उससे वंचित न रह पाए ।


        केएल शाही


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