जिज्ञासा


जिज्ञासा के पंख लगाकर,


मन प्रश्न अनगिनत करता है,


क्यूँ चाँद बढ़ा घटा करता,


कैसे सूर्य रोज उदित होता है,


क्यूँ आसमान नीला होता है,


क्यों धरती का हृदय खींचता,


हर वस्तु- प्राणी को अपनी ओर,


उड़ते पंछी को देख देख कर,


हममें उड़ने की जागी जिज्ञासा,


जन्म लिया नन्हा सा बच्चा,


भी बढ़ता नित जिज्ञासा के साथ, 


माटी खाकर उसका स्वाद जानता,


छूकर अग्नि की जलन जानता,


जिज्ञासा सृजनों की जननी,


अंतरिक्ष के स्वप्न दिखती,


अनसुलझे प्रश्न सुलझाती,


बिन जिज्ञासा के जीवन सुना,


लक्ष्य विहीन सा मानव होता,


मन मे पलने दो कुछ जिज्ञासा,


हर पल नया जानने की आशा,


कुछ प्रश्नों के उत्तर तुम दो,


कुछ प्रश्न कभी मुझसे पूँछो,


कुछ सुंदर उत्तर मिल जाएँगे,


संतुष्ट होगी जब जिज्ञासा।


 


नीलम द्विवेदी


रायपुर छत्तीसगढ़


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