हिंदी हमारी पहचान


हिंदी कोई बिंदु नहीं है पूरा हिंदुस्तान है,


इसके कारण आज विश्व में भारत की पहचान है।


भारत में सबसे ज्यादा लोगों की बोली भाषा है,


जन जन का विश्वास है हिंदी जनमानस की आशा है।


वीरों की भाषा है हिंदी देश प्रेम की भाषा है।


फिर हिंदी को लेकर क्यों दक्षिण में बड़ी निराशा है?


दुनिया के हर राष्ट्र की भाषा उसकी गाथा गाती है,


यह दक्षिण के लोगों को क्यों बात समझ नहीं आती है?


देवनागरी लिपि में वह गणराज्य की भाषा घोषित है,


यह केंद्रीय सरकार के द्वारा दृढ़ता से संपोषित है।


राष्ट्रीय भाषा किसी देश की होती बहुत जरूरी है,


बिना राष्ट्रभाषा का अपनी ही पहचान अधूरी है।


राष्ट्रीय भाषा लोगों का आपस में प्रेम बढ़ाती है,


हम सब एक सूत्र में हैं दुनिया को यह बतलाती है।


हिंदी का प्रादेशिक भाषाओं से है संघर्ष नहीं,


सर्वमान्य हिंदी होने से इनका है अपकर्ष नहीं।


क्षेत्रीयता की ज्वाला से हमको बाहर आना होगा,


राष्ट्रीय भाषा हिंदी को हम सब को अपनाना होगा।


राजनीति से ऊपर उठकर इसको हम स्वीकार करें,


राष्ट्र की भाषा हिंदी से और भारत माँ से प्यार करें।


अखिलेश्वर मिश्र


कवि और रचनाकर


बेतिया,बिहार


पिनकोड-845438


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