गर्भधारण से जनमने तक
जनमने से घिसटने तक
कभी पेट में
कभी गोद में
कभी पीठ पर
कभी पेट पर
मां ढोती है उसका बोझ
और बोझ नहीं समझती
बाल्यावस्था में
सौभाग्यशाली रहा तो बहन
वरना आस पड़ोस की लड़कियां
ढोती हैं लोभ-क्रोध का बोझ
पाठशाला में सहपाठिनें ढोती हैं
अहंकार का बोझ
प्रेमिका मिली
तो ढोती है कुंठाओं का बोझ
सबसे ज़्यादा ढोतीं हैं पत्नियां मूर्खता,जड़ता,सनक
और दंभ का बोझ
बीमार पड़ा तो ढोती हैं
परिचारिकाएं
बुढ़ापे में ढोती हैं बेटियां
(अगर अभागा न हुआ तो)
और मरने के बाद भी
पीछे बची औरतें ही ढोती हैं
उसकी अच्छी बुरी स्मृतियां
पुरुष!
धरती पर ऐसा बोझ है
जो बिना स्त्री के सहारे
बिलकुल अपने दम पर
एक पल भी टिक नहीं सकता
चाहे वह जितना महान हो
वह जितना महान होगा
उतना ही कठिन बोझ होगा
वैसे महानता ख़ुद में
एक बड़ा बोझ ही होती है
जैसे होते हैं पुरुष
*- हूबनाथ*
प्रोफेसर ,मुंबई विश्वविद्यालय