मैं क़ासिम इब्ने हसन हूँ भतीजा हुसैन का
लो लुट रहा है घर का घर नूरे ऐन का
चचा ने रोक रख्खा है जाने नहीं देते
बोले की तुम तो हो मेरे लिये वक़्त सुकून चैन का
यें सुनके याद आई बात बाबा जान की
जो देके गए मुझको ज़रा देख लूँ अभी
खोला तावीज़ और पढ़ा वसीयते पिदर
पहुँचे फिर चचा जान के पास लेके खत
पढ़के सुनाया और पूँछा जाऊँ मैं किधर
दिल है बेताब की मैं कदमों में आपके जाऊँ बिखर
अब आप ही कुछ बोलिये ऐ प्यारे चचा जान
बाबा का करूँ कैसे मैं पूरा आखिरी अरमान
देदीजिये इजाज़त मैं भी रन में जाऊँगा
नाना के दीन के वास्ते सर अपना कटाऊँगा.
मिलते ही इजाज़त पहुँचे जो रन के मैदान में
एक खलबली सी मच गई यज़ीदियों की जान में
फिर हर तरफ लाशों का ढेर लगाने लगे क़ासिम
एक साथ कइयों को जहन्नम पहुंचाने लगे क़ासिम
ये देख सिम्र लाइन की निकली तेज़ आवाज़
अंजाम नज़र आने लगा देख के आगाज़
बोला लाइन जाके एक साथ घेर लो
जो हो सके तो वो ज़रा जल्दी ही कर लो
ऐसे ही रहा तो क़ासिम जल्द हमको भी मारेगा
सीधा वो हम सब को जहन्नम सिधारे गा
बस देखते ही देखते सब क़ासिम पे टूट पड़े
छलनी था सीना फिर भी क़ासिम थे यज़ीदियों से अड़े
अब वक़्त आ गया था वादे वफा का पास
होकर निढाल गिर गए खैमे की थोड़ी पास
देदी आवाज़ आईये देखिये मुझे चचा
मैं भी चला जन्नत को मैं भी नहीं बचा
अल्लाह निगेहबान हो अब आप सभी का
अल्लाह निगेहबान हो अब आप सभी का ।
आफ़रीन दीबा
किरतपुर , बिजनौर ( उ.प्र. )