हक़ की ख़ातिर ख़ुदी से लड़ा कीजिये


दोस्त खुद से मोहब्बत किया कीजिये ।


 


जिंदगी को न यूँ ,बददुआ, कीजिये ।


 


बेख़ुदी में क़दम डगमगा गर गये।


 


फिर से उठके सम्भलकर चला कीजिये ।


 


जिंदगी खौफ़ में ना गुज़र जाये यूँ ।


 


हक़ की ख़ातिर ख़ुदी से लड़ा कीजिये ।


 


खुद से रूठो नही ख़ुद को कोसों नही ।


 


खुद से नफ़रत कभी ना किया कीजिये ।


 


जिंदगी है हंसीं है ये दुनिया हंसीं ।


 


इसको जन्नत के माफ़िक जिया कीजिये ।


 


हर किसी के जनम में है मक़सद छुपा ।


 


फ़र्ज पूरे सनम बावफ़ा कीजिये ।


 


नाम रोशन रहे जिससे माँ बाप का।


 


काम ऐसे हमेशा किया कीजिये ।


 


ज़िन्दगी इक डगर है गुलों खार की ।


 


,सुष ,मगर इसको जी भर जिया कीजिये ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


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