बहुत दिन से कुछ अनमना सा हुआ है,
चलो आज दिल को फिर से मनाएँ ।
चलो फिर से मिलते पुरानी जगह में,
लबों पे पुरानी हँसी फिर सजाएँ।
फाड़े थे कल रात भर जिन खतों को,
वो उड़ कर मेरे पास ही आ रहे हैं,
चलो जोड़ती हूँ मैं फिर सारे टुकड़े,
कि शायद नई कुछ कहानी सुनाएं।
बहुत दिन से कुछ अनमना सा हुआ है,
चलो आज दिल को फिर से मनाएँ ।।
न तुम पूछना कि दिन कैसा बीता,
न हम तुमसे पूछेंगे, कब रात आयी,
चलो आज फिर से,सुनूँ तेरी धड़कन,
डूबकर उसमे सारी उमर बीत जाए।
बहुत दिन से मन की दबी बात मन में,
चलो आज खुलकर, तुम्हें सब बतायें।
बहुत दिन से कुछ अनमना सा हुआ है,
चलो आज दिल को फिर से मनाएँ ।
नीलम द्विवेदी
रायपुर छत्तीसगढ़