चलने का नाम है जिंदगी, रुकना नहीं चलते जाना है।
सांसें चलतीं है और अनंत अनवरत चलती ही जाती हैं।
न थकतीं है न रुकती हैं हर पल चलतीं ही जाती है।
जब सांसें लड़खड़ाती है तो जीवन लड़खड़ा जाता है।
लड़खड़ाई हूं कई बार मैं भी
लेकिन खुद ही संभालती हुई खुद को आगे बढ़ती रही हूं।
गिरी हूं बेशक मगर उठाने के लिए किसी की बाट जोही नहीं,
खुद उठी और फिर चल पड़ी हूं।
नहीं भाता मुझको, सांत्वना सहानुभूति
मैं ने किया है स्वयं में ही स्वयं की अनुभूति।
सजाया संवारा है खुद ही स्वयं को।
स्वप्निल पलकों में नव स्वप्न पल्लवित पुष्पित हुए हैं।
मैं फिर उड़ चली हूं गगन आज छूने।
रुकना नहीं, है मुझे चलते जाना
चलते ही रहने की संभावना है।
आशा सिंह मोतिहारी
27/08/2020