अल्फ़ाज़ों के अफ़सानों में
अल्फ़ाज़ों के अफ़सानों में लिखती थी बेबाक सच्चाई वो,
पढ़ने वाले पाठक को रचना में देती दिखाई वो।
शब्दों के मोती संजो-संजो कर अंतर्मन को हर लेती वो,
भाव बसाने को अक्षर में कलम को थाम लेती वो।
खामोशियों को बड़े गौर से अमृता अक़्सर सुनती रहती थी,
रातों के समय वो प्रीतम ही सुकून से लिखती रहती थी।
लिखने वाले तो बस कविता लिखते और ज़िन्दगी जीते हैं,
मगर ज़िन्दगी को लिखती प्रीतम थी और कविता को ही जीती थी।
अफ़साने का हर अल्फ़ाज़ साहिर की नज़्र में लिखती थी,
वो प्रीतम थी जो प्रेम पर कविता लिख-लिख कर ही जीती थी।
@अतुल पाठक "धैर्य"
जनपद हाथरस(उ.प्र.)
मोब-7253099710