टूटकर   बिखरे  हैं घूंघरु  सावनी   बरसात  में

प्राण  छूकर  साँस ने  धड़कन बढ़ा दी रात में 

दिन में जुगनू  छुप  गये थे  तारों की बारात में 

 

मन  की  हसरत  प्रीत  थी वो  रात कैसे छूटती

सदियों से जिसने पंख गंवाये मद भरे आघात में 

 

प्यार की वो  एक आभा कंचनी बन उड़ चली 

नूर बन निकला  सितारा नभ से इक निजात में 

 

जुगनूओं  ने रात  को जब  लय जगाई गीत की

बांध  घूंघरु  पाँव  आयी  आभा  नवल  प्रात में 

 

उसकी मुरादें होंगी पूरी आज सूर -लय-ताल की 

साँस  ने  मोती  पिरोई   कसमसाती   सौगात में 

 

जूगनूओं के ग़म में नाची शब भी आधी रात तक 

टूटकर   बिखरे  हैं घूंघरु  सावनी   बरसात  में ||

 

किरण मिश्रा

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