ठंडी ठंडी हवा चले
जवां दिल रवाँ चले
नभ में बादल छाये
जियरा है घबराये
काली घटा घनघोर
नहीं किसी का जोर
बारिश बूँदे है बरसे
प्यासे अंग हैं तरसे
शीतल जलवायु है
सोलह वर्ष आयु हैं
बरसात का शोर है
मन भावविभोर है
ये मौसम रंगीन है
अंग प्रत्यंग लीन है
छत भी हैं चूने लगे
वैरागी मन रोने लगे
बाहर हर्षोल्लास है
मन बहुत उदास है
बीजुरी भी है चमके
यौवन रस है टपके
कली भी खिल जाएं
प्रेम बूँदें हैं मिल जाए
रंग बिरंगे फूल खिले
साथी को साथी मिले
काली बहुत ही रैन है
सुखविंद्र भी बेचैन है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)