"तेरे नन्हीं उँगलियों ने
जब भी मुझे छुआ
एक सिहरन-सी
उतर आई पूरे बदन में
और मैं---
खिलखिला उठी
खुद में हीं
खुद से-
खुद के लिए
तेरी तोतली आवाज ने
जब भी मुझे पुकारा
लहरा उठी मैं
एक सुखद मन लिए
खुद में
खुद से हीं
सिमट जाने को आतुर
डबडबाई आँखे
पुकारने को बेचैन
और थरथरा कर
मौन हो गए
होठों के शब्द
तेरी ठुनकती
मचलती
विहंसती किलकारी
छुपा लेती है मेरी
बुद्धि
विवेक
और-सारी दुनियादारी
बन जाती मैं भी
एक बच्ची
तेरे संग घूमती
किलकती
बिलखती
मचलती
पर ---
रह जाते
सारे शब्द मौन
जब छुड़ा लेता कोई
मुझसे तेरी
नन्हीं उंगलियों को
छुपा लेता कोई
तेरी स्निग्ध मुस्कान को
नजर उतरता कोई
मेरे नजर से हटाकर
सहमा देता कोई
मुझसे हटाकर
स्तब्ध रह जाती तब
अपने आगोश पर
सहम जाती मैं
तब अपने हीं बोल पर
छलक जाते तब
खुद हीं ये नयन
लरज जाते शब्द
अपने हीं मौन पर
और मैं खड़ी-खड़ी
निहारती हीं रही
शब्दों के शब्द को
सँवारती हीं रही"
💐💐💐💐💐
डॉ मधुबाला सिन्हा
वाराणसी
07.07.2020