सहारों का उजाला ''

सहारों का उजाला हो कितना


ख़ुशिओं तक ही वो टिकती है


मजबूरियों के फिर अँधेरे में


हिम्मत का शोला दहकता है !


मंजिल हो प्यारी जिसकी


वो राहों में न कभी अटकता है


भूल जाएं जो लक्ष्य कभी


वो सारा जीवन भटकता है !


हैं गर्म हवाओं का डर उसको


जो मख़मल में ही पलटा है


उसे अंगारों का भय क्या होगा


जो काँटों पर ही चलता हैं !


शोभा खरे ''


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