मुस्कुराती हूँ तो आँखों में नमी आती है
अपने ही ज़र्फ़ पे फिर मुझ को हँसी आती है
चल के जिस राह पे आते हैं यहाँ दैर-ओ-हरम
उस से पहले ही मुहब्बत की गली आती है
इश्क़ की राह में पहरे न बिठाए कोई
ये वो शय है जो दबे पाँव चली आती है
दुश्मनी क्या है तेरी याद को आख़िर मुझ से
जब तुझे भूलना चाहूँ ये तभी आती है
वो भी आ जाए किसी रोज़ 'सुमन' शाम ढले
जिस तरह उस की यहाँ याद चली आती है
सुमन ढींगरा दुग्गल