निरापद कहाँ रहा है यह जग,
आयेदिन घटनाएँ होती रहती,
कहीं बाढ़- सूखा तो कहीं महामारी,
है कहीं भूकंप से धरा हिलती रहती,
है कहीं भूकंप से धरा हिलती रहती,
प्रकृति कृति है कितनी विलक्षण,
कहते 'कमलाकर' हैं कितना भी हो,
प्रभु ही देते हैं सबको संरक्षण।।
कवि कमलाकर त्रिपाठी.
निरापद