नवगीत


आओ हम गीतों  को जी लें।
भावना  का आकाश  छू लें।
पलकों  से गिर के,जो मोती  हुए  ।
आँसू  वे आत्मा की ज्योति  हुए ।
वैदिक ऋचाएं बने,दैवी  कथाएँ  हुए ।
संस्कृतिदर्शन बने,सतयुगी हवाएं हुए।
उनको ही आदर से पी लें।
आओ हम गीतों को जी लें।
दर्द, दर्द, दर्द  है हृदय  में ।
कविता  तो दर्दों का छंद है।
किसको सुनाएं     व्यथाएं।
कौन यहाँ इतना स्वच्छंद है।
बस इसलिए जख्मों को सी लें।
आओ हम गीतों  को जी    लें।
बचपन को फिर से पुकार  लें।
थोडी सी माटी उधार   लें   ।।
नयनों में  इन्द्र धनुष आंज के।
धरती पर चन्द्रमा उतार    लें।
कागज  की नावों से खेलें   ।
आओ हम गीतों  को जी लें।
कोहरे में  डूबा  आकाश  है।
सूर्य  ही जिन्दगी कीआस है।
अंधियारे जो चाहे कर     लें ।
जीतेंगे हम ही विश्वास      है।
देहरी पे एक    दिया  धरके।
आओ हम जिन्दगी से हंस लें ।
आओ हम गीतों  को जी लें ।।
---------डा-ज्ञानवती  
169,प्रतिभा  निवास  ,रोटी गोदाम 
सीतापुर -261001


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