आज हमने रस्ते में..कई लाल धागों से लिपटा पेड़ देखा।न जाने किस किस ने अपने खयालों खवाबों और मन्नतों के धागे बांधे हो....
मैं भी ठिठक गयी।रुक गयी थी कुछ पल..जीवन के कुछ पुराने पलछिन और कुछ नए ने आकर..मेरे खोये विचारों को झकझोरा मुझे....
तुम क्यों खड़ी हो यहां....
क्या चाहिए अब तुम्हें....मेरी जैसे तन्द्रा टूटी हो।जागते ही बोली.....कुछ नही.....
चाहती तो हूँ कुछ लाल धागे मैं भी बांध जाऊँ.. अपने सपनों के...पर हिम्मत न हुई मेरी..बस इतना ही कह पाई मैं...
हे वृक्ष देवता जिन लोगों ने बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ ये लाल धागे बांधे है तुम्हारी विराट फैले शाखाओं में...उनका मनोबल न टूटने देना कभी......मत तोड़ना....उसके अथाह झूठे विश्वास को..वे टूट जाएंगे...
तभी जैसे आकाशवाणी हुई हो...ये मृत्यु लोक है कैसे कह दूं कि...सब पूरे होंगे?लोग बिना कर्म किये ही...जादू की तरह अपने सपने पूरे करना चाहते है।
मैंने फिर मन ही मन बुदबुदाया...देखती हूँ...जिसने कड़ी मेहनत की है उसके सपने पूरे करते हो या नही..?
बेईमानों की इस दुनियां में सत्य की जीत होती है कि नही...?
इंतजार कायम है शायद ईश्वर हर इंसान की कभी न कभी कठिन परीक्षा लेता है उसपर हम खरे उतरे या खोटे.. यह समय तय करेगा...☺️☺️
नीलम बर्णवाल