मन



मन तेरे रूप हजार 
तुझसे कौन पाए पार
इस पल जोगी तू बैरागी 
उस पल नित नए श्रंगार
बन सयाना कभी सोचे
कभी बच्चे सा व्यवहार
मन की नाव जो बैठा डूबा
मन किसको ले जाए पार
तन तो माटी का पुतला है
मन का ही सब व्यापार
आत्मा तेरी अविकारी सदा से
मन में पलते सभी विकार
मन को बांधे तो बंधन छूटेंगे
होगी नैया भव से पार
स्वरचित :🔥सुनीता द्विवेदी🔥
कानपुर उत्तरप्रदेश
२५/०६/२०२०


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