मारो मत अपनों पर कलम की मार

 



सुनो! रिश्तों में जब आती है दरार,
तब घर में खड़ी हो जाती है दीवार।
पल भर में अपने हो जाते हैं बेगाने,
और बेगानों पर आने लगता है प्यार।


कुछ नहीं सूझता बुद्धि रहती है खराब,
छोटी छोटी बातों पर होती है तकरार।
तमाशा देखकर हँसते हैं दुनिया वाले,
सरेआम रिश्ते होने लगते हैं शर्मसार।


फिर विश्वास उठ जाता है एक दूजे से,
बनाये से भी नहीं बन पाता है ऐतबार।
दुश्मन उठाते हैं फायदा, लेते हैं मजे,
क्रोधवश कर नहीं पाते हैं हम विचार।


"सुलक्षणा" नफ़रत को मत बढ़ाओ,
मीठा बोला, करो प्रेम रस की बौछार।
क्रोधाग्नि को शांत करो चिंतन करके,
मारो मत अपनों पर कलम की मार।


©® डॉ सुलक्षणा


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