कीर्तन

नित  कीर्तन  करें  परमात्मा का,
है    कभी     न    जाता    व्यर्थ,
सहज   सरस   रहता  है  जीवन,
औ कभी  न होता अनिष्ट अनर्थ,
कभी  न    होता  अनिष्ट  अनर्थ,
पाप - ताप   सब  मिट  जाता है,
कहते  'कमलाकर' हैं  कीर्तन से,
मुक्ति - मोक्ष, परमपद पाता है।।
   
कवि कमलाकर त्रिपाठी.


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