कविता वीरों को समर्पित



जो त्याग कर निज प्राण को अरमानों का अर्थी उठा।
वो चल पड़ा दे कर शहादत ख्वाब को अपने जला।


संवेदना का बीज बो स्वतंत्र कर अपना जन्म।
हां आ गया वो वीर अपने गांव में ओढ़े कफ़न।


स्तब्ध थी धरती वहां की मौन था विस्तृत गगन।
थम गई थी आंधियां भी रो रहा था गुल  चमन।


मौन थी मैया की ममता बाप का लुटा चमन।
उड़ गए किस देश में तुम कर रही तुझको नमन।


अश्रु धारे बह रहे हैं  रो रहा बहना का प्यार।
हो गई है प्रीत गूंगी मौन करता है चीत्कार।


 मां तुम्हारी दूध का कीमत चुका पाया नहीं।
ऋण तुम्हारी ममता का ये मां चुका पाया नहीं।


बूढ़े पिता की अर्थी को कंधा नहीं दे पाया हूं।
हे प्रियतम मैं दोषी हूं तुझे छोड़ तड़पता आया हूं।


मां धन्य है जननी तेरा कोख धन्य धन्य है 
पावन  धरती की माटी धन्य  हिंदुस्तान है।


हे मैया तू रोना मत तेरा लाल का बलिदान है।
आंसू से तेरे धो रहा चरण तेरा जहान है।


व्यर्थ ना जाएगा मेरा मां, अमर मेरा बलिदान है ।
प्राणों से भी प्यारा माटी ये  मेरा हिंदुस्तान है।


फिर आऊंगा इस धरती पर तेरा ऋण भी चुकाऊंगा।
करके गए थे वादे जितने आकर उसे निभाऊंगा।


 पुत्र मोह को भूल ही जाना  मां तेरा  एहसान है।
जान से प्यारा मुझको तो ये हिंदुस्तान हिंदुस्तान है।


** मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश


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