लघुकथा
अमृता अपने लॉन में खड़ी चारों तरफ़ लगे गुलाब के फूलों को निहार रही है.. वसंत आ चुका है, फूलें अपनी तरूणाई पे हैं...आधुनिक युग की देन, पाश्चात्य संस्कृति का उपहार, वेलेण्टाइन सप्ताह का आग़ाज़ हो चुका है! आज रोज़ डे है.. फ़ेसबुक , वाट्सऐप पे मैसेजों की बाढ़ आ गई है..अमृता का जीवन भी गुलाब के फूलों की तरह ही मुस्कुराता हुआ है! उसने अपनी सुंदर वाटिका बनाई है, जिसके सभी सदस्य फूलों की तरह हर पल मुस्कुराते हैं! उसे लगता है उसने कितने संताप झेले है.. तब कहीं जाकर उसे सुखद दिन का मुँह देखने को मिला है! वो अतीत के पन्ने उलटने लगती है....
उसके कोई भाई नहीं था! वो चार बहनें ही थी!सबसे छोटी और मम्मी-पापा, सभी बहनों की लाड़ली थी!तीनों बड़ी बहनों की शादी पिता ने भारी दान-दहेज देकर कर दिया था। माता पिता दोनों मिलकर एक प्राइमरी स्कूल चलाते थे। अब छोटी लड़की के दान-दहेज के लिए उनके पास नाम मात्र के ही पैसे बचे थे! अमृता देखने में बहुत सुंदर, सुशील और पढ़ाई में भी अव्वल थी।अभी उसने स्नातक पास ही किया था..उसकी उम्र बीस ही हुई थी! अचानक पड़ोस की एक आँटी उसके लिए दुबई में काम करने वाले एक इन्जीनियर का प्रस्ताव लेकर आ धमकी! उन्होंने मम्मी पापा से कहा मेरी बहन का लड़का है.. बहुत ही होनहार और सुशील है, हैंडसम है.. तिलक दहेज कुछ भी नहीं लेगी मेरी बहन! मम्मी पापा को प्रस्ताव भा गया! जाँच परख कर उसकी शादी कर दी गई!शादी के दस दिन बाद ही वो दुबई चली गईं...कुछ दिनों तो उसके चन्द्रमुखी वाले समय रहे... उसका पति अभिषेक उसे स्वीटजरलैंड
हनीमून के लिए ले गया...हर सुबह की शुरुआत अभिषेक उसके बालों में गुलाब का फूल लगाकर ही करता..फिर देश विदेश घूमने का सिलसिला चल पड़ा...वो दिन कहती तो दिन , रात तो रात कहता..अमृता बहुत खुश थी, उसे लगता, शादी के बाद की ज़िंदगी ऐसी ही होती है...छ: माह यूँ ही निकल गये...दो माह का गर्भ भी उसके पेट में आ गया...अभिषेक अब उब चुका था उससे !घर में उसकी महिला मित्रों का आना जाना शुरू हो गया! वो घरेलू हिंसा पे भी उतरने लगा...तरह तरह के बहाने कर के उसे आये दिन पीटता..अमृता के पेट में उसका बच्चा पल रहा ,इससे उसे कोई मतलब नहीं होता..उसे पेट में भी मारता,गालियाँ देता..फ़ोन करने नहीं देता! वो दिन रात रोती , उसे समझाने की कोशिश करती.. पर कोई फ़ायदा नहीं होता..अंत में वो उससे छुटकारा पाने का सोंचने लगी..।अभिषेक के पास पैसे तो बहुत थे, वो इधर-उधर फेंक कर पैसे रखता था। उन पैसों में से ही कुछ पैसे अमृता ने उठा लिए और भारत आने का इन्तज़ाम किया!भागकर वो अपने मम्मी पापा के पास आ गई!मम्मी पापा दुखी तो बहुत हुए, पर अपनी लड़की के निर्णय और साहस पर उन्हें फ़ख़्र भी हुआ!
अमृता मम्मी पापा के स्कूल में ही प्राचार्या का काम देखने लगी...बचे समय में वो सिविल सर्विसेज़ की तैयारी भी करती!तीन माह बाद उसने पुत्र रत्न को जन्म दिया! बच्चे की देखभाल उसके माता-पिता ही करते! वो सिविल सर्विसेज़ परीक्षा की तैयारी में लगी रहती!
उत्तर प्रदेश सिविल सेवा में उसका चयन हो गया... इस बीच अपने पिता के सहयोग से उसने अभिषेक से तलाक़ भी ले लिया था! अब वो बहुत खुश थी! गुलाब सा सुन्दर उसका एक बच्चा...जो नन्हीं बाँहें फैलाकर ख़ुशियाँ उड़ेल रहा था!एक अच्छी सी सम्मान जनक नौकरी थी.. दानवीय साया से दूर सम्मानित ज़िन्दगी थी उसके सामने.. बाहों में ख़ुशियाँ थी..उन्मुक्त गगन था!चल पड़ी वो गुलाब का फूल बनकर... सुरभित करती हुई समस्त फ़िज़ा को! बच्चे की देखभाल तो माता पिता ही कर रहे थे..चार पाँच साल बाद उनकी तबियत ख़राब रहने लगी, वो स्कूल बंद कर इसके पास ही आ गए!
आज उसके माता-पिता नहीं हैं। बेटा निखिल अमेरिका के एम. एन. सी. में इन्जीनियर है, बहु भी वहीं एक कम्पनी में इन्जीनियर है! लखनऊ में उसने बड़ा सा मकान बना रखा है... एक वर्ष बाद वो भी सेवानिवृत्त हो जाएगी...पर वो बहुत खुश है... उसकी अपनी बनाई हुई वाटिका है... जिसमें अर्जित किए गये हज़ारों उसके गुलाब शरीखे रिश्तेदार हैं जो गुलाब की तरह काँटों के बीच रह कर भी सदा हँसते खिलखिलाते है!कोई दानव नहीं..यहाँ कोई उसे भोग की वस्तु नहीं समझता...
अतीत की बातें याद कर दृढ़ इरादों वाली अमृता की पलकें भी गीली होने लगती हैं..तुरंत वो अपना सर झटकती है और क्यारियों में लगे गुलाबों की ओर देखने लगती है ।उसे पुष्प की अभिलाषा की वों पंक्तियाँ याद आती हैं—
मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीष चढ़ाने , जिस पथ जाएँ वीर अनेक!
वाक़ई काँटों के बीच हँसते हुए जीवन जीने वाले गुलाबों का पावन गन्तव्य वही पथ है जिससे मातृभूमि की रक्षा करने उसके शूरवीर गुजरते हैं!!
स्वरचित
रंजना बरियार
07/02/2020