गीत  


"झूमि-झूमि बरसत बा सावन, ननदी तोहरे गाँव रे
लागल झूलुआ अमरइया में,आम नीम के छाँह रे


गरज-गरज बदरा डेरवावे,छुप जा गोरी ठाँव रे
आ जाए परदेसी पहुनवा,अब त तोहरे गांँव रे
चमक-चमक बीजुरी तड़पावे, बरसे कारी आग रे
ऐ गोरी तू काहे तड़पऽ,अइसे पीपर छाँव रे
झूमि-झूमि बरसत बा सावन-----


तोरे देश पिया धरती हरियाये, फूल खिले बहार रे
मोरे कूचे भरो अँधियारो, ना तारन की छाँह रे
ताकत रहिया अँखियाँ पथरायी, रूठे सावन मोर रे
मन ना जाने कइसे हरषे, हियरा भइल अब थोर रे
झूमि-झूमि बरसत बा सावन----


बरसे मोरी अँखियाँ ननदी, भींगे मन के धाह रे
कइसे झुलीं सावन के झूला,बह जाए कजधार रे
फूटे कण्ठ मृदुल कजरी, धुल जाए सिंगार रे
ना आवन था,ना आए पिया,बहत रहल रसधार रे
झूमि-झूमि बरसत बा सावन------


तोरी गलियां महके-चहके,जइसे गमके कचनार रे
मोरी गलियां सुन भयी अब,जइसे हहरे पियास रे
ना कुहूके बैरिन कोइलिया,ना अब नाचे मोर रे
मोरे मन के मंदिर सुना,कब आए किशन मोर रे
झूमि-झूमि बरसत बा सावन------
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© डॉ मधुबाला सिन्हा
वाराणसी
07.07.2020


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