अपना खातिर नभ के छाजन,
भक्तन बदे अटारी,
हवें दीन हितकारी
महादेव त्रिपुरारी।
तीन गुन साधि तिरशूल लेइ हाथे
जगमग जोती चान देत चढ़ि माथे
भगतिभाव से चरन पखारे
सुरसरि जलवा ढारी।
भूत प्रेत कहि जग बिलगावे, बाँटे
रखले नगीच शिव हियरा से साटे
मस्ती में सब गावे, नाचे
करि के जय जयकारी।
खुश रहे भांग बेलपतरे चबा के
करेलें सिंगार तन भभूति लगा के
अपने खालें रूखा- सूखा
दुनियाँ के सोहारी।
भेदभाव, छल-छद्म नियरा न झाँके
शक्ति, भक्ति, मुक्ति नित ठाढ़ सकुचा के
अमरित बाँटे जहर पिये खुद
बनि के भव भयहारी।
संगीत सुभाष