जाज्वल्यमान

माँ!   भारती  की  अनंत अनुकंपा से,
है जीवन होता दीप्त  - जाज्वल्यमान,
संदीपन  - उद्दीपन  है होता उत्तरोत्तर,
औ मानव होता निष्णात  -  बुद्धिमान,
मानव    होता   निष्णात  -  बुद्धिमान,
है   यश - कीर्ति  होती  जीवन, जग में,
कहते 'कमलाकर' हैं  जाज्वल्यमान से,
है शुद्धता - शुचिता  रहती अंतरंग में।।
    
कवि कमलाकर त्रिपाठी.


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