"एक नज़्म"


"एक नज़्म तेरी कलम से
लिख दूँ मैं तेरे लिए
रहे हमेशा अपना वह
या रहे सदा तेरे लिए

कुछ पल यूँ खामोश रहे
कुछ पल में सब कह डालें
एक प्रीत की तड़प समझ
खुद में ही सब रच डालें

कुछ कहना क्या तुमसे है
ना अब कुछ समझना है
कई रँग, रँग गया है जीवन
ना गहरे अब उतरना है

लिखना चाहो, लिख डालो
अब करना इंतजार है क्या
वक्त पलट कब जाएगा
समझो,अब समझाना क्या

शायद मैंने अर्थ बदल दी
तेरे शब्द लिख देने की
मन को समझा पाती नहीं
है जंग अर्थ समझ लेने की

जीवन धरी रही अबतक 
अर्थ बदल न पाएँ हम
शब्दों को पिरो लो शायद
कहना अब कह पाएं हम

चलो कहीं कोई भरम तो टूटे
सम्भल जाय सब थमने तक
तेरे प्रीत से बंधी जो डोरी
कह दे सब मेरे जाने तक,,,,
  
डॉ मधुबाला सिन्हा
वाराणसी


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