मानवता-
व्याप्त जिसके रग रग में
धैर्य और संयम का
जिसमें है प़ाऱावार
कर देता स्वयं के जीवन का उत्स़र्ग़
मऩ में है सदैव निश्छल समर्पण -भ़ाव
नहीं है उन सम जगत् में कोई महान्
ऊंच-नीच में जो न करें विभेद
'जाति-धर्म' से करता सतत् परहेज
अदम्य साहस का ओढ़कर कवच
कर्म - वेदी पर कर देता अपने
अरमानों का बलिदान
नि: स्वार्थ भाव से जो सेवा कर
बचायें सर्वदा ही सबों के प्राण
वही है 'धरती का भगवान '
जिसे न खुद के दर्द का है एहसास
और न है खुद के आराम की परवाह
बस, जिन्दगी को अपने
कर दिया आहूत वतन के नाम
उन विभूतियों को है कोटि-कोटि प्रणाम
जो है आन-बान-शान
और भारत मां का अभिमान
वो और नहीं है कोई 'डाक्टर- साहब'
उसी का नाम ।
स्वरचित मौलिक रचना
राजीव भारती
भिवानी हरियाणा