चूड़ियां

लाल हरी और  नीली पीली रंग बिरंगी चूड़ियां।
होती हर सुहागन की सुहाग का प्रतीक चूड़ियां।


गोरी की कलाई में जब भी सजती है चूड़ियां।
अपनी मनमोहक खनक से मन मोह लेती चूड़ियां।


उम्र हो चाहें कोई भी पर  सबको भाती है चूड़ियां।
प्यार का मनुहार नवल  श्रृंगार की ये चूड़ियां।


कांच वाली, लाह वाली, मेटल वाली चूड़ियां।
दिल से सबको खूब लुभाती सुहाग वाली चूड़ियां।


जब भी खनके सावन में वो हरी हरी सी चूड़ियां।
 मन मयूरा नाच उठे जब जब भी पहने चूड़ियां।


खूब लुभाती जी ललचाती हरी हरी वो चूड़ियां।
तीज त्योहार का पावन सा प्रतीक हमारी चूड़ियां।


पकड़े थे जब साजन ने कलाई मेरी गोरी सी।
टूट के छन से छनक गई थी रंग बिरंगी चूड़ियां।


याद बहुत आती है हमको बचपन वाली चूड़ियां।
सतरंगी पहनी थी सावन के मेले में चूड़ियां।


भरी कलाई जब चूड़ी से तभी तो सोभे चूड़ियां।
यही कामना आज है मेरी भरी रहे सब बहनों की ।


सतरंगी चूड़ियों से सभी सुहागन की सजे कलाई।
सदा सुहागन का  प्रतीक हमारी रंग बिरंगी चूड़िया।।


मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)


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