भाव प्रवाह 26 


अनुसरण - यानी अनुकरण। अनुसरण तो किसी अच्छी बातों और अच्छे व्यक्तियों का ही करना चाहिए। हमारी समृद्ध पौराणिक और ऐतिहासिक गाथाएँ वैसे अनुसरण करने योग्य पात्रों से भरे पड़े हैं, जिनकी जीवनी किसी चमत्कार से कम नहीं है। आज न जाने क्यों वे पात्र गौण हो गए हैं। आज उनके स्थान पर काल्पनिक ही मैन सरीखे काल्पनिक किरदार आकर्षित करने लगे हैं। हमारी जिंदगी आधुनिकता की चकाचौंध से चमत्कृत होती रही है और हमें परिवर्तन का अंधानुकरण आकर्षित करता रहा है। 
           कभी-कभी यह अनुसरण तो दीवानगी की हद तक पार कर जाती है। आज हम खूब अनुसरण कर रहे हैं, पर सोंचने की बात है कि हम जिस के प्रति आकर्षित हो रहे हैं उससे क्या अपनी पहचान हम खोते नहीं जा रहे ? तेजी से हम ग्लोबल हो रहे हैं। दुनिया सिकुड़ती जा रही है। हम विभिन्न संचार माध्यमों से जैसे दुनिया मुट्ठी में कर बैठे हैं। 
          हम दिन-रात अनुसरण कर रहे हैं दूसरों का, दूसरों की संस्कृति का, व्यवहार का, खानपान का और रहन-सहन का। बस, हम अनुसरण किए जा रहे हैं, पर क्या जरूरी नहीं है कि हम ठहरे ? पीछे छूट रही विराट विरासत का ध्यान करें ? हमारी संस्कृति, हमारा भोलापन, हमारा आचार- व्यवहार कहाँ विलुप्त हो रहे हैं ? हम उन्नति तो इतना कर गए हैं कि उन पर जाहिलपन का ठप्पा लगा रहे हैं ! 
                हम ने काफी तरक्की कर ली है। दिन-ब-दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहे हैं, किंतु पीछे छूटती जा रही है हमारी विशिष्टता जो तब से कायम है जब सारी दुनिया असभ्य और बर्बर थी। हर काल में हमारी विशिष्टता कायम रही है। एक गेरुआ धारी शिकागो के सर्वधर्म सम्मेलन में अपने विशिष्ट संबोधन से पूरी दुनिया को स्तब्ध करता रहा। आधे नंगे फकीर ने हमारी उसी विशिष्टता का उदाहरण बन विश्व का नायक बन गया। बुद्ध, महावीर, राजा राम मोहन राय, परमहंस, विवेकानंद जैसे असंख्य मनीषियों ने भारत को अनुसरण योग्य बनाया। 
             आधुनिक काल के असंख्य महानायकों ने भारत को अनुकरणीय बनाए रखने में अपना स्वर्णिम योगदान देते रहे हैं। हम क्यों ना अपने महानायकों का अनुसरण करें। उनके विचारों, सिद्धांतों, जीवन दर्शनों को अपने जीवन में स्थान दें? कब तक हम अनुसरण करते रहेंगे दूसरों का। उनका पहनावा , उनका रहन - सहन, उनके आचार - व्यवहार कब तक और क्यों हमें लुभाते रहेंगे? हमारी इंद्रधनुषी संस्कृति को क्यों न हम अनुकरणीय बनाये रखें? 
       तो आइए, हम अनुसरण करें अपनी समृद्ध और विशाल संस्कृति और परंपरा का, भारत के गौरवशाली दर्शन का और सिद्धांत का ताकि हमारी विशिष्टता अपनी पहचान लिए अक्षुण्ण बनी रहे। 


     डॉ उषा किरण


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