अहसास तेरे
शब्दों के अर्थ
बदल देते हैं..........
मेरे अहसासों के
और वे अहसास
डुबोते हैं मुझे
कहीं गहरे
अन्तस तक
प्रेम की पराकाष्ठा में
जहाँ मैं....तू मिल कर
बस तू ही तू में
विलीन हो जाते है.......
शायद यही तो "प्रेम" है
उस परमात्मा की .......
पूर्ण-अनुपम
"अलौकिक कृति"
किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"
नोयडा