तड़प बाकी न रह जाती अगर तुम देखते मुड़कर |
क़सर कोई न रह जाती अगर तुम देखते मुड़कर ||
मुझे भी दर्द कम होता तुम्हें भी राहतें मिलतीं |
सज़ा आसान हो जाती अगर तुम देखते मुड़कर ||
निगाहों में ज़माने की हमेशा तीरगी आई |
सहर मिलने चली आती अगर तुम देखते मुड़कर ||
तुम्हारी दिलक़शी को आज भी महसूस करता हूँ |
असर तुम पर यही होता अगर तुम देखते मुड़कर ||
कभी दिल की गिरह को खोलकर जो ढूँढते मुझको |
नज़र तुमको वहीं आता अगर तुम देखते मुड़कर ||
अकेला ही चला हूँ मंज़िलों की ओर जाने को |
सफ़र भी एक हो जाता अगर तुम देखते मुड़कर ||
तुम्हारे बिन मुहब्बत के शज़र को सूखते देखा |
समर इक फूल हो जाता अगर तुम देखते मुड़कर ||
निशानी इश्क़ की मुझको न मिलती इस तरह कोई |
ज़ख़्म दिल पे नहीं होता अगर तुम देखते मुड़कर ||
बहुत आसान सी लगती बहुत ही प्यार से मिलकर |
बसर 'मन' ज़िन्दगी होती अगर तुम देखते मुड़कर ||
मनीष कुमार शुक्ल 'मन'
लखनऊ