"रात की बात ,तो अधूरी है
तेरी बातें सजन,अधूरी हैं
पल-पल चुनती समय को
मेरे जज़्बात अभी अधूरे हैं
छुप कर आ गयी तेरे पास
लेकर मन मिलन की आस
प्यासे होठों की तपिश सँग
कुछ अनकही बातों की सांस
वह छत की शाम अधूरी है
सुबह की चाय भी अधूरी है
दिन ढलने लगी मिलन की
कह दो, रात भी अधूरी है
मंदिर खोजी,मस्जिद ढूंढी
ताल- तलैया अँगना ढूंढी
देहरी से जो लगी दीवारें
उनके दहलीज़ पूरा ढूंढी
ना मिलना था,ना मिले तुम
कह कर भी न आए तुम
दीप जलाकर राह निहारी
न जाने हो गए कहाँ गुम
चलो,जाने की बेला में क्यों
कहते-सुनते रुक गए क्यों
अब अपना कह डालोगे या
मौन अभी भी रहोगे क्यों,,
प्रश्न तुम्हीं हो और ज़बाब भी
खेवनहार हो और डुबान भी
चलते-चलते बिछड़ न जाऊँ
मंजिल तुम हो और राह भी,,,,,,,
★★★★
© डॉ मधुबाला सिन्हा
वाराणसी
12 जुलाई 20
अधूरे हैं