कुछ इस तरहा वो
याद आ जाते है
स्याह रात को
चाँद कर जाते है
कुछ इस तरहा
निगाहों में
वो कहीं बस जाते है
बरबस आँखों से
समुन्दर बह जाती है
कुछ इस तरहा शोख़
मोहब्बत है उनकी
वो सर्द मौसम को
तपिश कर जाते है ...
अपनी दुआओं की
जागीर मे
मुझे समेट लेते है
वो मेरा
मन्नत का धागा हो जाते है ...
कुछ इस तरहा वो
याद आ जाते है...
स्याह रात को
चाँद कर जाते है ...
मनोरमा सिंह