वो भुख से मरी थी 

कैसे बताएं वो भुख से मरी थी, 
निगाहों ने एक आह सी भरी थी, 
जैसे किसी से शिकायत सी करी थी, 
धंसी आँखें, सूखे होठों की पपडियां, 
चिपके पेट की ऐंठी अंतड़ियां, 
भले लोगों को समझ ना आया होगा, 
उस छोटे बच्चे ने हिला डूला कर 
दिखाया होगा, 
परा भुख की मारी की नींद गहरी थी, 
कैसे बताएं वो भुख से मरी थी ।
उसके चेहरे पर प्रश्न का एक भाव था, 
प्रश्न में गिरती इंसानियत का घाव था ।
क्या हिन्दुस्तान अब हिन्द महादेश हो गया?
दिल्ली, पंजाब, गुजरात अलग देश हो गया!
उसके चेहरे की भंगिमाएं बड़ी थी, 
अपने देश के लोगों से कहीं दूर खड़ी थी ।
जींदगी से उसकी जंग बड़ी थी ।
पर कैसे बताएं वो भुख से मरी थी ।
हाय विधाता यह कैसा तेरा विधान है?
देख पल भर में सारा शहर अन्जान है ।
दुध वाले विरजू भैया, वो काम वाली बाई, 
सब्जी वाला सूरज, वो सैलून वाला नाई ।
महामारी की मार ने, सबको बेघर कर दिया ।
इसी भागम-भाग में वो खूब लड़ी थी ।
कैसे बताएं वो भुख से मरी थी ।
वो भुख से मरी थी ।
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            ✍
जन्मेजय कुमार पाण्डेय 
ग्राम शिव नगरी 
थाना मुफस्सिल 
जिला छपरा सारण बिहार ।


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