हौंसले उम्मीद की जहान अभी बाक़ी है।
कुछ क़दम ही तो चले उड़ान अभी बाकी है।
एक बीज बोना है सपनों की बंजर भूमि पर।
नित नए सजाना है उम्मीदों के आसमान पर।
मन में हमने ठानी जो करके रहेंगे हम उसे।
बेतुकी बातों पे अब ना ध्यान देंगे हम कभी।
करके पूरे ही रहेंगे ठान लिए है जो अभी।
हारना ना वक्त से है ना सकल जहान से
दृढ़ निश्चय कर लिया गुजरेंगे इम्तेहान से।
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क्यूं दमन कर ले हम ईक्षा क्यूं सहम जाएं भला
हार करके थक के हम क्यूं बैठ जाएं अब भला।
हर समस्या से लड़ेंगे होंगे ना अवसाद ग्रस्त।
देश की रक्षा में अरि को मूल से कर देंगे नष्ट।
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घात ही होता रहा कब तक हम सहते जाएंगे
तोड़ कर संयम की डोरी अब उसे बतलाएंगे।
पर अगर औकात से ज्यादा सुनो फैलाएगा।
काट कर के पर तेरे उड़ान फिर दिखलाएंगे!
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मातम के गीत कविता अब नहीं दुहराएंगे।
तेरे ही सरहद पे दुश्मन मार तुझे गिराएंगे।
देख ही लिया है तुमने दंभ मेरे वीरों का।
इस शहादत का बदला जल्द ही दिखलाएंगे ।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी ( उत्तर प्रदेश)